Thursday, March 14, 2013

राधा ....मीरा .....



                                                                   

राधा .....
आँखें है दो ....
जो देखती है ....
पर कहती नही ..
कहती हैं ...जब
बस, बहती हैं ....
कान्हा से मिलने को
............






मीरा
मन है ....
भटकता है ....
तडपता है .....

रहते हुए
संसार में ....
सहता है
मन के मौसम ....
एक मूर्त
मनचाही से
 मिलने को ........
............



राधा होने के लिए
जरूरी है
पहले मीरा बनना ......
और फिर .........
बस हो जाना .....
राधे -राधे ..
राधे -राधे ...
राधे -राधे ....



 (मन है किसी से भी जुड़ सकता है ...नहीं जानते हम स्वयं भी ....कोई कहाँ तक उतर सकता है ....)
..................................





7 comments:

दिगम्बर नासवा said...

मीरा बन के राधा बना जा सकता है ... पर राधा तो कृष्ण ही है ...

Kailash Sharma said...

बहुत गहन भावमय रचना..अद्भुत...

निर्झर'नीर said...

Abhar or shubhkamnayen
radhe radhe

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह....
बहुत सुन्दर..

अनु

Unknown said...

अति गहन और भावमय अभिव्यक्ति । सच कहा आपने मन है जो किसी से भी जुड़ जाए। कृष्ण से जुड़ना चाहिए । बधाई

Zee Talwara said...

thanks for shring this information
Zee Talwara
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