राधा .....
आँखें है दो ....
जो देखती है ....
पर कहती नही ..
कहती हैं ...जब
बस, बहती हैं ....
कान्हा से मिलने को
............
मीरा
मन है ....
भटकता है ....
तडपता है .....
रहते हुए
संसार में ....
सहता है
मन के मौसम ....
एक मूर्त
मनचाही से
मिलने को ........
............
राधा होने के लिए
जरूरी है
पहले मीरा बनना ......
और फिर .........
बस हो जाना .....
राधे -राधे ..
राधे -राधे ...
राधे -राधे ....
राधे -राधे ....
(मन है किसी से भी जुड़ सकता है ...नहीं जानते हम स्वयं भी ....कोई कहाँ तक उतर सकता है ....)
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7 comments:
मीरा बन के राधा बना जा सकता है ... पर राधा तो कृष्ण ही है ...
बहुत गहन भावमय रचना..अद्भुत...
Abhar or shubhkamnayen
radhe radhe
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
वाह....
बहुत सुन्दर..
अनु
अति गहन और भावमय अभिव्यक्ति । सच कहा आपने मन है जो किसी से भी जुड़ जाए। कृष्ण से जुड़ना चाहिए । बधाई
thanks for shring this information
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
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